यों ही गुज़र
आज का दिन गया
आज का दिन
प्यार का गीत लिखा
न ही उदासी की
न ही डूबते सूरज की
फोटो खींची
न ही झुर्रियोंदार चेहरे की
तस्वीर बनाई
न ही हिना वाले
हाथों को छुआ
न ही चूड़ी वाली
कलाई को चूमा
न ही पनीली
आंखों में झांका
न ही दर्दीली
आवाज़ को आंका
जाने किस खाई में
उतर गया दिन
किरच-किरच जैसे
बिखर गया दिन
यों ही गुज़र गया
आज का दिन।
आज का दिन गया
आज का दिन
प्यार का गीत लिखा
न ही उदासी की
न ही डूबते सूरज की
फोटो खींची
न ही झुर्रियोंदार चेहरे की
तस्वीर बनाई
न ही हिना वाले
हाथों को छुआ
न ही चूड़ी वाली
कलाई को चूमा
न ही पनीली
आंखों में झांका
न ही दर्दीली
आवाज़ को आंका
जाने किस खाई में
उतर गया दिन
किरच-किरच जैसे
बिखर गया दिन
यों ही गुज़र गया
आज का दिन।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteमिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।
bahut hi umda rachna.. badhaai..
ReplyDeleteNav-Varsh ki shubhkamnayein..
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